Success Stroy - जोधपुर के फैमस मिश्रीलाल के स्टाम्प वाले पेड़ो की सक्सेस स्टोरी

आपने सोने और चांदी के सिक्कों पर कई तरह की ब्रांडिंग देखी होगी। लेकिन आप ये जानकर चौंक जाएंगे कि एक ऐसी मिठाई भी है जिस पर सोने और चांदी के सिक्कों की तरह ब्रांडिंग की जाती है। ये है जोधपुर के मिश्रीलाल के केसर पेड़े, जिनके हर पीस पर एक स्पेशल स्टैम्प लगाया जाता है। घंटाघर चौक पर अंग्रेजों के जमाने से चली आ रही ये दुकान पूरे जोधपुर में बहुत फैमस है। दूर-दूर से दुकान ढूंढते हुए हर रोज लोगों की भीड़ मिश्रीलाल की दुकान पर इनके पेड़े खाने आती है। मावा और केसर से बने सुनहरे रंग के यह स्टैम्प लगे पेड़े दिखने में जितने सुंदर है इसकी स्टोरी भी इतनी ही इनटरेस्टिंग है। तो आईये दोस्तो हम देखते है कैसे इसकी शुरुआत कैसे हुई, स्टैम्प लगाने का राज क्या है।

कैसे हुई मिश्रीलाल की शुरुआत - इसकी शुरुआत1927 में मिश्रीलाल जी ने की थी। आजादी से पहले पूरा मारवाड़ ब्रिटिश हुकूमत के अंडर में था। खाने-पीने की चीजें बेचने के लिए फीस देकर अंग्रेज अफसरों से लाइसेंस लेना पड़ता था। तब 1927 में मिश्रीलाल अरोड़ा जी ने फूड लाइसेंस लेकर इस दुकान से घी की कचौरी, रबड़ी और कोफ्ता बेचना शुरू किया। इसके साथ-साथ इंग्लैंड से कई फ्लेवर का सोडा मंगवाकर भी बेचना शुरू किया। साल 1960 में इनके बेटे राधेश्याम ने भी बिजनेस में हाथ बंटाना शुरू किया और माखनिया लस्सी की शुरुआत की। साल 1975 में मिश्रीलाल जी को ही पेड़े का आइडिया आया था।


कई प्रयोग करने के बाद उन्होंने मावा में केसर एड कर सुनहरी रंग के पेड़े बनाने की शुरुआत की। उनकी यह जिद्द भी थी कि हर पेड़ा मिश्रीलाल के नाम के साथ बिके। इसलिए उन्होंने पेड़े पर लगाने के लिए उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ से एक खास स्टैम्प भी बनवाई। आज भी जब नई मुहर की जरूरत पड़ती है तो अलीगढ़ से ही मंगवाई जाती है। आज भी मिश्रीलाल जी की रेसिपी से ही पेड़ा बनाया जाता है।और एक-एक पेड़े पर इनकी पुश्तैनी पहचान का ठप्पा यानी स्टैम्प लगाई जाती है।अभी मिश्रीलाल जी की तीसरी पीढ़ी यानी राधेश्याम जी के बेटे संदीप अरोड़ा इस बिज़नेस को चला रही है। बदलते ट्रेंड को देखते हुए ये ऑनलाइन भी अपने पेड़े को सेल कर रहे है। नॉर्थ और ईस्ट के कई स्टेट में इनके पेड़ो की बहुत है।



कैसे तैयार होते है स्टैम्प वाले पेड़े - इन पेड़ों को शुद्ध मावे से बनाया जाता हैं। मावा भी इनके दुकान पर ही तैयार होता है। पहले मावा कारीगर तैयार करते थे। लेकिन अब ज्यादातर काम मशीनों से होता है। भट्टी पर सिकाई के बाद मशीनों से ही मैश किया जाता है। पेड़ो को बनाने में करीब 10 घंटे का टाइम लगता है। तैयार होने के बाद स्टैम्प लगाने का काम कारीगर ही करते हैं।




हर रोज बनते है 100 किलो पेड़े, करोड़ों में कारोबार - जिस छोटी सी दुकान से मिश्रीलाल की  शुरुआत हुई थी उसे आज एक होटल में बदल दिया है। माखनिया लस्सी, घी की कचौरी और पेड़े तीनों ही उनके ब्रांड बन चुके हैं। इनके यहाँ हर रोज 100 किलो पेड़े तैयार होते हैं। मिलावट नहीं होने की वजह से ये पेड़े 10 दिन तक खराब नहीं होते। एक किलो पेड़े की कीमत 480 रुपए है। सालाना कारोबार 1 करोड़ रुपए से ज्यादा का है।






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