भारत की साइबर सिक्योरिटी सॉल्युशंस प्रोवाइडर क्विक हील आज 54.8 करोड़ रुपये रेवेन्यु वाली कंपनी है। बीएसई पर क्विक हील टेक्नोलॉजीज का मार्केट कैप 1,341.80 करोड़ रुपये है। इस कंपनी की शुरुआत वैसे तो दो भाइयों कैलाश काटकर (Kailash Katkar) और संजय काटकर (Sanjay Katkar) ने की थी लेकिन यह उपज कैलाश काटकर के दिमाग की रही। कैलाश क्विकहील के एमडी व सीईओ हैं वही संजय कंपनी में CTO हैं। स्कूल ड्रॉपआउट कैलाश को आखिर क्विक हील का आइडिया आया कैसे? कैसे दोनों काटकर भाई फर्श से अर्श पर पहुंच गए आइये इस पोस्ट में हम इनकी सक्सेस स्टोरी को देखते है।
कैलाश काटकर ने 10वीं कक्षा के बाद ही स्कूल इसलिए छोड़ दिया था। इन्होने अपनी स्कूल छोड़ने के बाद अपने करियर की शुरुआत 1985 में एक रिपेयरिंग शॉप से की जहां वह कैलकुलेटर और रेडियो रिपेयर किया करते थे। कैलकुलेटर रिपेयर करने के उन्हें 400 रुपये हर महीने मिलते थे। कैलाश के पिता फिलिप्स में मशीन सेटर थे और कैलाश ने अपने पिता को घर पर रेडियो रिपेयर करते देखा था। धीरे—धीरे स्क्रीन प्रिंटिंग, रेडियो रिपेयरिंग आदि से उनकी कमाई 2000 रुपये महीना हो गई। रिपेरिंग स्किल को अच्छे से समझने के बाद 1991 में उन्होंने पुणे में खुद की इलेक्ट्रॉनिक रिपेयर शॉप खोल ली। दुकान खोलने के लिए उन्होंने 15000 रुपये का निवेश किया। शॉप खोलने के कुछ टाइम बाद ही इन्हें न्यू इंडिया इंश्योरेंस के लिए सालाना मेंटीनेंस का कॉन्ट्रैक्ट भी मिला।
एक टाइम की बात है जब कैलाश सर एक बैंक में केलकुलेटर रिपेयर करने गये थे और इन्होने पहली बार वहा कंप्यूटर देखा। इसे देख कर इन्होने बैंक एम्प्लोयी से इसके बारे में जाना और इन्हें तब ही रियलाइज हो गया की यह डिवाइस आने वाला फ्यूचर है। और इन्होने इसे खरीदने का डिसाइड किया और 50000 रुपये में पहला कंप्यूटर खरीदा, जिसका इस्तेमाल वह बिलिंग के लिए करते थे और लोग उनकी दुकान पर केवल उसे देखने आते थे ।1990 के आस पास भारत में कंप्यूटर मार्केट बूम पर था एसे में कैलाश सर ने अपने रिपेयर बिजनेस के साथ-साथ 1993 में CAT कंप्यूटर सर्विसेज को भी शुरू किया। यह कंपनी कंप्यूटर मेंटीनेंस सर्विसेज की प्रोवाइड करती थी। इस दौरान कैलाश ने पाया कि रिपेयरिंग के लिए आने वाली अधिकांश मशीनें वायरस से इन्फेक्टेड होती थी। यह देखकर कैलाश ने अपने भाई संजय को एंटीवायरस प्रोग्राम पर फोकस करने की सलाह दी। इस टाइम संजय अपनी मास्टर्स की पढाई कर रहे थे। संजय सर ने अपने मास्टर्स के दूसरे साल में ही इन्फेक्टेड मशीनों को फिक्स करने वाला प्रोग्राम विकसित कर लिया।
इसके बाद एंटीवायरस प्रोग्राम की भविष्य में जबर्दस्त मांग को देखते हुए काटकर ब्रदर्स ने अपना फोकस हार्डवेयर रिपेयरिंग से एंटी वायरस सॉल्युशन को डेवलप करने में लगाया। दोनों भाइयों ने 1995 में अपना पहला प्रॉडक्ट क्विकहील एंटीवायरस फॉर DOS लॉन्च किया। क्विक हील को 700 रुपये में बेचा जाने लगा, यह उस वक्त उपलब्ध सबसे सस्ते विकल्पों में से एक था। 1998 आने तक काटकर ब्रदर्स ने हार्डवेयर रिपेयरिंग बंद कर दी और एंटीवायरस पर शिफ्ट हो गए। कैलाश प्रॉडक्ट्स की मार्केंटिंग करते थे, जबकि संजय रिसर्च व डेवलपमेंट देखते थे। शुरू होने के पहले 5 साल क्विक हील का कारोबार पुणे तक ही सीमित रहा और यह अभी तक सफल नहीं हो सका था। बैंकों व इन्वेस्टर्स की ओर से रुचि की कमी की वजह से उन्हें 1999 में कारोबार बंद करना पड़ा। लेकिन फिर दोस्तों के साथ बातचीत के बाद उन्होंने अपने प्रॉडक्ट की एग्रेसिव मार्केटिंग करने की ठानी। कैलाश ने टाइम्स ऑफ इंडिया न्यूजपेपर में आधे पेज का विज्ञापन दिया और कारोबार के विस्तार के लिए मार्केटिंग पर फोकस करना शुरू किया।
2002 में उन्होंने पुणे के बाहर अपना कारोबार फैलाया। 2003 में क्विक हील की पहली ब्रांच नासिक में खुली 2002 से 2010 के बीच क्विकहील ने पुणे के बाहर दूसरे बड़े शहरों में विस्तार करना शुरू किया। 2011-12 में काटकर ब्रदर्स एंटरप्राइज सॉल्युशंस कारोबार में उतरे। फिर धीरे-धीरे कंपनी ग्लोबल ब्रांड नेम बनती चली गई। 2007 में कंपनी का नाम बदलकर क्विकहील टेक्नोलॉजीज लिमिटेड रखा गया जब पुणे में नया रिसर्च एंड डेवलपमेंट सेंटर खोला गया। 2010 में कंपनी को Sequoia Capital से 60 करोड़ रुपये की फंडिंग मिली। फंड का इस्तेमाल नई ब्रांच खोलने में किया गया। तमिलनाडु के बाद दो साल के अंदर जापान, अमेरिका, अफ्रीका और यूएई में ब्रांच खुल गईं। 2011 से क्विक हील ने एंटरप्राइज कस्टमर्स के लिए सिक्योरिटी सॉफ्टवेयर विकसित करना शुरू किया और 2013 तक कंपनी ने कंप्यूटर्स व सर्वर्स के लिए अपना पहला एंटरप्राइज एंडपॉइंट सिक्योरिटी सॉफ्टवेयर जारी किया। आज कंपनी रिटेल और एंटरप्राइज दोनों सेगमेंट को प्रॉडक्ट उपलब्ध कराती है। साल 2016 में क्विक हील का आईपीओ आया और उसके बाद यह शेयर मार्केट पर लिस्ट हुई।