दोस्तों राजस्थान भीलवाड़ा के रहने वाले आदित्य बांगर ने ट्रैश टू ट्रेजर नाम से अपने स्टार्टअप की शुरुआत की है। इनका ये स्टार्टअप प्लास्टिक की बोतलों, रैपरों और कवर्स को रिसाइकिल कर के कपड़े के फेब्रिक को तैयार करता है। सिर्फ 17 साल की ऐज में इन्होने अपने इस स्टार्टअप को शुरू किया और आज इनके इस स्टार्टअप का सालाना टर्नओवर 1 करोड़ से भी ज्यादा का है। आईये दोस्तों इस पोस्ट में हम इनकी कम्पलीट स्टार्टअप स्टोरी को देखते है।
2019 की एक रिपोर्टों का अनुमान है कि पूरे भारत की लैंडफिल में लगभग 3.3 मिलियन मीट्रिक टन से ज्यादा प्लास्टिक वेस्ट जमा हो गया है और ये दिन ब दिन बढ़ता जा रहा है जिससे पर्यावरण को खाफी नुकसान हो रहा है। इस प्लास्टिक वेस्ट को मैनेज करना हम सब के लिए एक चुनौती हैं। पर्यावरण को नुकसान के साथ इसके कही और नुकसान है जैसे कचरे में पड़ी प्लास्टिक की थैलियों को कहा कर कही जानवर मर जाते है। इन सब परेशनियों को कम करने के लिए राजस्थान के भीलवाड़ा निवासी आदित्य बांगर (17) ने कपड़े बनाने के लिए प्लास्टिक की बोतलों, रैपरों और कवरों को रिसाइकिल कर के इससे colthing fabric बना रहे हैं।
कैसे मिला बिज़नेस आईडिया - दोस्तों आदित्य एक बिज़नेस फैमेली से तालुक रखते है। जब ये 10th क्लास में थे तब इन्हें अपनी फैमेली के साथ चीन गए थे और यहाँ इन्होंने एक टेक्सटाइल मेले में हिस्सा लिया वहीं पर आदित्य ने प्लास्टिक कचरे को रिसाइकिल कर के फेब्रिक बनाने की टेक्नोलॉजी के बारे में जाना आदित्य को ये टेक्नोलॉजी बहुत पसंद आयी और इन्होंने से भारत मे शुरू करने का डिसाइड किया। इसके लिए इन्होंने इसकी पूरी डिटेल्स को जाना और वही से इनके दिमाग मे इस बिज़नेस को भारत मे शुरू करने का आईडिया आया। इसके बाद आदित्य वापस भारत लौट आए और इन्होने अपने घर में इस बिज़नेस आइडिया को लेकर बात की। चूंकि इनका परिवार पहले से बिजनेस से जुड़ा हुआ था, इसलिए आदित्य को भी आसानी से इसकी इजाजत मिल गई। उन्होंने चीन में प्लास्टिक वेस्ट से फाइबर तैयार कर रही कंपनियों से कॉन्टैक्ट किया और वहां से रिसाइकिल करने वाली मशीनें मंगाई। इसके बाद भीलवाड़ा में ही उन्होंने अपना सेटअप जमाया और प्रोडक्शन यूनिट शुरू की। इस बिज़नेस को शुरू करने के लिए इन्होंने ने अपने पिता की कंपनी से फंड को जुटाया और 'ट्रैश टू ट्रेजर' नाम से अपने स्टार्टअप की शुरुआत की।
कैसे करते हैं काम - अभी सिर्फ प्लास्टिक वेस्ट को ही रिसाइकिल कर रहे हैं। इसके लिए ये लोकल लेवल से लेकर नगर निगम तक से वेस्ट कलेक्ट करते हैं और कई छोटे वेंडर्स से भी इनका टाइअप है, जिनसे ये पैसे देकर प्लास्टिक खरीदते हैं फिलहाल ये हर दिन 10 टन प्लास्टिक रिसाइकिल कर रहे हैं। प्लास्टिक वेस्ट से फेब्रिक तैयार करने की प्रोसेस में ये सबसे पहले वेस्ट को कलेक्ट करते है इसके बाद उसे कैटेगराइज करते हैं। इसके बाद सभी बॉटल से ढक्कन निकालते है और उन्हें क्लीन करने के बाद ड्राय करते हैं। फिर मशीन की मदद से उसे महीन क्रश कर लेते हैं। इसके बाद इसे केमिकल वॉश करते हैं और मशीन की मदद से मेल्ट कर लेते हैं। मेल्ट होने के बाद हम इसे कुछ घंटों के लिए ठंडा होने के लिए छोड़ते हैं। ठंडा होने के बाद यह फाइबर के रूप में तब्दील होता है। इसके बाद प्रोसेसिंग करके इससे फैब्रिक तैयार किया जाता है। एक किलो प्लास्टिक वेस्ट से लगभग 800 ग्राम फाइबर तैयार होता है। अभी ये हर दिन 8 टन फाइबर तैयार कर रहे हैं। फिलहाल वे ब्रांड-टू-कस्टमर यानी B2C मॉडल पर काम नहीं कर रहे हैं। उनके यहां जितना भी फाइबर से फेब्रिक तैयार होता है, वे एक कंपनी को सीधे बेच देते हैं। जो आगे इससे कपड़े और बाकी चीजें तैयार करती है। अभी आदित्य की टीम में 200 लोग काम करते है और इनका सालाना टर्नओवर 1 करोड़ से ज्यादा का है
आप कैसे शुरू कर सकते है - एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में सालाना 150 लाख टन प्लास्टिक का कूड़ा बनता है। दुनियाभर में जितना कूड़ा हर साल समुद्र में बहा दिया जाता है उसका 60% हिस्सा भारत डालता है। जबकि अभी करीब एक चौथाई प्लास्टिक वेस्ट को ही रिसाइकिल्ड किया जा रहा है। इससे आप समझ सकते हैं कि यह कितनी बड़ी चुनौती है। केंद्र सरकार और राज्य सरकारें प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट को लेकर अभियान चला रही हैं। यूनाइटेड नेशंस डेवलपमेंट प्रोग्राम (UNDP) के तहत देश में प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट को लेकर कई प्रोजेक्ट पर काम चल रहा है। अगर कोई इस सेक्टर में करियर बनाना चाहता है तो उसे सबसे पहले प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट को समझना होगा। उसकी प्रोसेस को समझना होगा। इसको लेकर केंद्र और राज्य सरकारें ट्रेनिंग कोर्स भी करवाती हैं। इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वेस्ट मैनेजमेंट, भोपाल से इसकी ट्रेनिंग ली जा सकती है। इस सेक्टर में काम करने वाले कई इंडिविजुअल भी इसकी ट्रेनिंग देते हैं।