Startup Story - जाने कैसे परली और राख से ईटे बनाकर इन दो भाइयो ने कमाए 3.5 करोड़ | Successful startup story of green jams

उत्तराखंड रुड़की के रहने वाले तरुण जैमी जो की एक सिविल इंजीनियर हैं, लेकिन इंजीनियरिंग की पढ़ाई के समय या उसके बाद, उन्होंने कभी जॉब के बारे में नहीं सोचा। वे ऐसा काम करने के बारे में सोचते थे, जिससे न सिर्फ कंस्ट्रक्शन इंडस्ट्री में बदलाव आए बल्कि उन्हें भी अच्छी कमाई हो।इसीलिए इन्होने ने ग्रीनजैम्स नाम से एक स्टार्टअप शुरू किया। इसके जरिए उन्होंने एग्रीकल्चरल वेस्ट और फ्लाई ऐश (राख) से ईको-फ्रेंडली ईंटें बनाने का काम शुरू किया। ऐसी ईंटों को एग्रोक्रीट कहा जाता है। दिसंबर 2020 में इन्होने अपने बिज़नेस को शुरू किया और सिर्फ 10 महीनों में इनके स्टार्टअप को 3.5 करोड़ के ऑर्डर मिल चुके हैं। तो दोस्तों आज की इस पोस्ट में हम इनकी कम्पलीट स्टार्टअप स्टोरी, इनके बिज़नेस मॉडल को देखेगे।

 


इन्हें ग्रीनजैम्सस्टार्टअप का आइडिया दिल्ली की एक घटना से आया जब ये 2019 में दिल्ली में ड्राइव कर के कही जा रहे थे तब स्मॉग और पॉल्यूशन के कारण इनके कार के शीशे से बहार साफ दिखाई नहीं दे रहा था और इस वजह इनका एक्सीडेंट हो गया। इसके बाद इन्होने दिल्ली में बढ़ते पॉल्यूशन का कारण पता लगाना शुरू किया तो इन्हें एक रिसर्च से पता चला कि हरियाणा और पंजाब में फसल की कटाई के बाद जलने वाली पराली दिल्ली की खराब एयर क्वालिटी के लिए 44% तक जिम्मेदार है।

पराली यानी फसल काटने के बाद बचा बाकी हिस्सा होता है, जिसकी जड़ें धरती में होती हैं। अगली फसल बोने के लिए खेत खाली करना होता है, किसान तो सूखे पराली को आग देते है। इस पूरी प्रक्रिया में बहुत ज्यादा मात्रा में कार्बन निकलता है और पर्यावरण को नुकसान ​​​​होता है। कुछ महीनों की रिसर्च के बाद 2020 में तरुण ने अपने भाई और पिता के साथ मिलकर ग्रीनजैम्सनाम से स्टार्टअप शुरू किया, जिसमें यह एग्रोक्रीट यानी ईको- फ्रेंडली बिल्डिंग मटेरियल तैयार करते है। 

 


जाने कैसे भट्ठे वाली ईंट से बेहतर है ये ईंट - इन ईंटों को बनाने में पराली का इस्तेमाल होता है, जिसे पहले जला दिया जाता था और उसकी वजह से पर्यावरण में कार्बन की मात्रा और ज्यादा बढ़ती और इससे पर्यावरण को नुकसान होता। लेकिन इन ईंटों को बना कर हम इस प्रोब्लम को खत्म कर सकते है। 

भट्ठे वाली ईंटों की तुलना में ये ईंटें बहुत मजबूत होती हैं। ये ऐसी ईंटें हैं जिससे बनाने वाली बिल्डिंग गर्मी में न ज्यादा गरम होगी और न ही ठंड में ज्यादा ठंडी। भट्ठे वाली ईंट की तुलना में इसको बनाने में 50% कम लागत और 60% कम समय लगता है। और साथ ही साथ इन ईंटों से बनाने वाली बिल्डिंग या मकान में सीमेंट का इस्तेमाल भी 60% तक कम होता है। 

 


कही किसानो और मजदूरों को दे रहे रोजगार - दरसल इनके पास 10 परमानेंट इम्प्लॉइज हैं जो साल भर काम करते है। इसके अलावा इन्हें सीजनल एम्प्लॉई की भी जरूरत होती है, जो फसल काटने के समय काम करते हैं। इनके इस स्टार्टअप से कही किसानों को भी रोजगार मिल रहा है। अब तक लगभग 100 किसानों के साथ टाई-अप कर लिया है, तरुण का कहना है कि आने वाले समय में इनके इस बिज़नेस से कई लोगों को खास कर किसानों को इस काम से फायदा होगा।

 


बिज़नेस मॉडल - ईको फ्रेंडली या एग्रोक्रीट ईंट बनाने की लिए पराली का इस्तेमाल किया जाता है। , हर सीजन में फसल काटने के बाद पराली बच जाती है। इसको इनकी एक टीम किसानों से खरीदती है। इसके छोटे-छोटे टुकड़े किये जाते हैं और गरम पानी में उबला जाता है। उबली हुई पराली को थर्मल पावर से निकलने वाली राख और BINDER (जो सीमेंट की तरह ही काम करता है और ये इको फ्रेंडली होता है) के साथ मिलाकर कार्बन नेगेटिव या एग्रोक्रीट ईंटे तैयार करते है।

इस पूरी प्रक्रिया में सबसे ज्यादा पराली का इस्तेमाल होता है। इस स्टार्टअप की वजह से किसान पराली को जलाने के बजाय तरुण की कंपनी को बेच देते है। अब तक इन्होने कही किसानों के साथ टाईअप किया है, जो फसल काटने के बाद पराली जलाने के बजाय इन्हें बेच देते है। इनके द्वारा हर एक एकड़ पराली के लिए किसानों को तीन हजार रूपए दिए जाते है।




 

 

 

 

 

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